बहुत ही मुश्किल औऱ बेहतरीन बह्र । सीखने वालों को काफी मदद मिल सकती है इसे अपनी कलम में ज़रूर उतारनी चाहिए ।
★★★★★★★★★★★★★★
बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
11212 11212 11212 11212
मेरी पसंदीदा बह्र औऱ गीत ।
★★★★★★★★★★★★★★
फ़िल्म आखरी दांव का जिसके गीतकार मजरुह सुलतानपुरी, गाया है रफ़ी साहिब ने, संगीत दिया है मदन मोहन जी ने ।
◆◆◆◆
बोल हैं::
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा, तेरे सामने मेरा हाल है
तेरी एक निगाह की बात है, मेरी जिंदगी का सवाल है
मेरी हर खुशी तेरे दम से है, मेरी जिंदगी तेरे गम से है
तेरे दर्द से रहे बेख़बर, मेरे दिल की कब ये मजाल है
तेरे हुस्न पर है मेरी नज़र, मुझे सुबह शाम की क्या खबर
मेरी शाम है तेरी जुस्तजू, मेरी सुबह तेरा ख़याल है
मेरे दिल जिगर में समा भी जा, रहे क्यो नज़र का भी फासला
के तेरे बगैर तो जान-ए-जां, मुझे जिंदगी भी मुहाल है
◆◆◆◆
इसी बह्र पर दूसरा गीत::
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
◆◆◆◆
बहुत बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteआपसे किस तरह इस्लाह ली जा सकती है ?
शुक्रिया हेमंत जी । आपने इतना मांन दिया ।
ReplyDeleteआप अपने प्रश्न यहां भी रख सकते हैं । मुझे मेरी जानकारी जितनी भी उपलब्ध होगी ज़रूर देने की कोशिश करेंगे । आप
मुझे मेरे email पर भी संपर्क कर सकते हैं ।
mahajanhk@gmail.com
साभार ।
सुंदर सराहनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया जिज्ञासा जी ।
Deleteसादर
ग़ज़ल सीखने वालों के लिए बहुत अच्छी जानकारी.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया डॉ जेन्नी शबनम जी ।
Deleteसादर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआ0 कविता रावत जी बहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteसादर
बहुत खूब ...
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ... बशीर बद्र जी ने उसका बहुत इस्तेमाल किया है ...
जी सही कहा आदरणीय दिगम्बर नासवा जी बशीर बद्र जी ने काफी इस्तेमाल की है ये बह्र ।
Deleteशुक्रिया आप इस मंच ओर आये औऱ अपने विचारों से अवगत करवाया ।
सादर
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मधुलिका पटेल जी ।
Deleteसादर
बहुत सुंदर l
ReplyDeleteआ0 मनोज कायल जी शुक्रिया ।
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मनीषा जी ।
ReplyDelete