Thursday, September 10, 2020

तकती::जाने क्या ढूंढती रहती है ये आँखे मुझमें

 एक बेहतरीन बह्र*****

बहरे रमल मुसम्मन मखबून महज़ूफ मकतुअ

पर फ़िल्म शोला और शबनम का एक ख़ूबसूरत नग़मा

गायक हैं मुहम्मद रफ़ी गीतकार कैफ़ी आज़मी

संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम


तकती


2122 1122 1122 22

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जाने क्या ढूंढती रहती है ये आँखे मुझमें,

राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है ।


अब न वो प्यार न उसकी यादें बाकी,

आज यूँ दिल में लगी कुछ न रहा कुछ न बचा ।

जिसकी तस्वीर निगाहों में लिए बैठी हो,

मै वो दिलदार नहीं उसकी हूँ खामोश चिता ।


ज़िन्दगी हँस के न गुज़रती तो बहुत अच्छा था,

खैर हंस के न सही रो के गुज़र जायेगी ।

राख बर्बाद मोहब्बत की बचा रखी है,

बार बार इसको जो छेड़ा तो बिखर जायेगी ।


आरज़ू जुर्म वफ़ा जुर्म तमन्ना है गुनाह,

ये वो दुनिया है जहां प्यार नहीं हो सकता ।

कैसे बाज़ार का दस्तूर तुम्हें समझाऊं,

बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता ।

बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता ।


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