बहुत ही मुश्किल औऱ बेहतरीन बह्र । सीखने वालों को काफी मदद मिल सकती है इसे अपनी कलम में ज़रूर उतारनी चाहिए ।
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बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
11212 11212 11212 11212
मेरी पसंदीदा बह्र औऱ गीत ।
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फ़िल्म आखरी दांव का जिसके गीतकार मजरुह सुलतानपुरी, गाया है रफ़ी साहिब ने, संगीत दिया है मदन मोहन जी ने ।
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बोल हैं::
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा, तेरे सामने मेरा हाल है
तेरी एक निगाह की बात है, मेरी जिंदगी का सवाल है
मेरी हर खुशी तेरे दम से है, मेरी जिंदगी तेरे गम से है
तेरे दर्द से रहे बेख़बर, मेरे दिल की कब ये मजाल है
तेरे हुस्न पर है मेरी नज़र, मुझे सुबह शाम की क्या खबर
मेरी शाम है तेरी जुस्तजू, मेरी सुबह तेरा ख़याल है
मेरे दिल जिगर में समा भी जा, रहे क्यो नज़र का भी फासला
के तेरे बगैर तो जान-ए-जां, मुझे जिंदगी भी मुहाल है
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इसी बह्र पर दूसरा गीत::
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
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