उर्दू शायरी का एक ऐब : शुतुर-गर्बा [ क़िस्त -2 अन्तिम]
पिछली क़िस्त में "शुतुर-गर्बा" ऐब पर बात चल रही थी । उसी बात को आगे बढ़ाते हुए------
अगर आप ने किसी शे’र में -मैं - शब्द का प्रयोग किया है तो उसी शे’र में फिर-- मैं --मेरा-मेरी--मेरे--मुझे--मुझको-्शब्द लाना लज़िम हो जायेगा।
यानी
-मैं --मेरा-मेरी--मेरे--मुझे--मुझको-मुझ से --मुझ पर --आदि
उसी प्रकार
हम-हमें---हमारा--हमारी -हम से--हम पर--आदि
उसी प्रकार
तुम--तुम्हें--तुम्हारा--तुम को --तुम से --तुम पर --आदि
उसी प्रकार
वह--उसे--उसको --उस से--उसपर --
वो-- उन्हें उनको--उनसे--उन पर ---आदि आदि
यह हिंदी व्याकरण का साधारण नियम है ।। अगर ऐसा नहीं किया तो ’शुतुर-गर्बा" का ऐब पैदा हो जाएगा।
आप ने यह फ़िल्मी गाना [ मेरे सनम ] ज़रूर सुना होगा---
जाइए आप कहाँ जायेंगे -ये नज़र लौट के फिर आएगी
दूर तक आप के पीछे पीछे--मेरी आवाज़ चली जाएगी
यह गाना बिलकुल दुरुस्त है आहंग में है--कोई ऐब नहीं।
अब इस गाने को यूँ कर देता हूँ-
जाइए आप कहाँ जाओगे -ये नज़र लौट के फिर आएगी
आहंग अब भी बरक़रार है लय अब भी सही है .वज़न अब भी वही है । मगर---लहज़ा ठीक नहीं है --शुतुर गर्बा -का ऐब आ गया। कारण कि
इस बदली हुई लाइन में आशा पारेख ने एक बार तो हीरो को [आप] जाइए कह रही है और तुरन्त बाद [ तुम ] जाओगे कह रही है । यह लहज़ा ठीक नही है
इससे शुतुर गर्बा का ऐब पैदा हो जायेगा जो ज़ायज़ नहीं है ।
शे’र में कोई ज़रूरी नहीं कि आप हमेशा--मैं--तुम--वह- आप प्रत्यक्ष रूप से लिखे ही लिखे---वह शे’र का लहज़ा बता देगा कि आप ने क्या संबोधित किया है ,कि आप क्या कहना चाह्ते हैं ।
अब कुछ शायरॊ के 1-2 कलाम लेते है ।
ग़ालिब का एक मशहूर शे’र है -आप ने भी सुना होगा।
मैने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक
बज़ाहिर पहले मिसरे में -मैने-- और दूसरे मिसरे में --हम-- ???? शुतुर गर्बा तो है ।
ग़ालिब उस्ताद शायर थे।उन से यह तवक़्को [ उमीद] तो नहीं की जा सकती है । तो लोगों ने कहा-कि इसका सही वर्जन यूँ है
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक
अब यह ऐब ग़ायब हो गया । अब ग़ालिब के इस शे’र का सही वर्जन क्या है--हमें तो नहीं मालूम मगर दूसरा वाला शे’र सही लग रहा है ।
हो सकता है कि ग़ालिब के किसी मुस्तनद दीवान [प्रामाणिक दीवान ] में शायद यही सही रूप लिखा हो ।”
एक दूसरा उदाहरण लेते हैं
’मोमिन’ की एक मशहूर ग़ज़ल है --जिसे आप सभी ने सुना होगा । ---तुम्हें याद हो कि न याद हो ---। यह पूरा जुमला ही रदीफ़ है ।
यदि आप ने इस ग़ज़ल के मक़्ता पर कभी ध्यान दिया हो तो मक़्ता यूँ है
जिसे आप कहते थे आशना,जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ मोमिन-ए-मुब्तिला ,तुम्हें याद हो कि न याद हो
-मोमिन-
यह शे’र बह्र-ए-कामिल की एक खूबसूरत मिसाल है । इस शे’र में भी बह्र और वज़न के हिसाब से कोई नुक़्स नहीं है
पहले मिसरा में ’आप’ और दूसरे मिसरा में ’तुम्हें’ --यह शुतुरगर्बा का ऐब है
ग़ालिब का ही एक शे’र और लेते हैं
वादा आने का वफ़ा कीजिए ,यह क्या अन्दाज़ है
तुम्हें क्या सौपनी है अपने घर की दरबानी मुझे ?
-ग़ालिब-
मिसरा उला मे "कीजिए" से ’आप’ का बोध हो रहा है जब कि मिसरा सानी में ’तुम्हें’ -कह दिया
यहअसंगत प्रयोग ? जी हां ,यहाँ शुतुर गर्बा का ऐब है ।
एक मीर तक़ी मीर का शे’र देखते हैं
ग़लत था आप से ग़ाफ़िल गुज़रना
न समझे हम कि इस क़ालिब में तू था
-मीर तक़ी मीर-
वही ऐब । पहले मिसरे में ’आप’ और दूसरे मिसरे में ’तू’ " ग़लत है ।ऐब है॥शुतुरगर्बा ऐब।
चलते चलते एक शे’र ’आतिश’ का भी देख लेते हैं
फ़स्ल-ए-बहार आई ’पीओ" सूफ़ियों शराब
बस हो चुकी नमाज़ मुसल्ला उठाइए
-आतिश-
[ मुसल्ला--वह दरी या चटाई जिसपर बैठ कर मुसलमान नमाज़ पढ़ते ...हमारे यहाँ उसे ’आसनी’ कहते हैं।
बज़ाहिर ,यह लहज़ा ठीक नहीं है।
अगर आप क़दीम [पुराने ] शो’अरा के कलाम इस नुक़्त-ए-नज़र से देखेंगे तो ऐसे ऐब आप को भी नज़र आयेंगे। नए शायरों में तो ख़ैर नज़र आते ही हैं।
किसी का ’ऐब’ देखना कोई अच्छी बात तो नहीं ।मगर हाँ -- ऐसे दोष को देख कर आप अपने शे’र-ओ-सुखन में इस दोष से बच सकते हैं
और ख़ास कर नए ,शायरों से यह निवेदन है कि अपने कलाम में ऐसे ’ऐब’ से बच सकें।
यह कोई दलील नही ,न ही सनद है, न ही लाइसेन्स है हमारे आप के लिए । ऐब ऐब है--चाहे हम करें आप करें या कोई और करे।
जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है
उनका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है
---अंजुम रहबर --
बस "अमीरी " को आप "शुहरत" कर के दुबारा पढ़े--बात साफ़ हो जायेगी।
अब आप बताएं -कि इस शे’र के मिसरा सानी में --उसका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है ---पढ़ सकते है ? अगर नहीं तो क्यॊं नहीं ?
इस मंच के तमाम असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो ज़रूर निशानदिही फ़रमाएँ कि आइन्दा मैं खुद को दुरुस्त कर सकूं~।
सादर
-आनन्द.पाठक-
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