दोस्तो मात्रा गणना के भी कुछ नियम हमें याद रखने की ज़रूरत है ।
कुछ शब्द ऐसे होते हैं जी हमेशा हमें दुविधा में डाले रखते हैं । कुछ तो हमारी ग़ज़लों को ही बे-बह्र कर देती है । मैं यहाँ सिर्फ उन्हीं मूलभूत शब्दों का ही ज़िक्र करूँगा ।
ये नियम सिर्फ ग़ज़ल विद्या का ही स्रोत हैं हालांकि हिंदी छंद विद्या की मात्रा गणना से इसका अलग ही अस्तित्व होता है ।
अमूमन किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण में दोनों जुड़ शाश्वत दो मात्रिक दीर्घ बन जाते हैं । जैसे हम (ह+म) हम-2 ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं । जिनको ज़रूरत के अनुसार 1 1 अथवा 1 नहीं किया जा सकता । जैसे-
पल,खल, घर, सम, दम आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं।
शाश्वत का मतलब जो बदला न जा सके ।
शाश्वत दीर्घ अर्थात 2 है तो उसे अलग अलग दो लघु मात्रा (1 1)नही गिना जा सकता ।
मगर जिस शब्द के उच्चारण में दोनों अक्षर अलग अलग उच्चारित होंगे वहां ऐसा नही होगा ।
वहां दोनो लघु अलग अलग उच्चारित होंगे ।जैसे:
असमय----अ/स/मय
अ1 स1 मय2---/112
क्योंकि इनका उच्चारण भी अलग अलग होता है ।
असमय को 22 नहीं किया ना सकता ।
अगर 22 करेंगे तो उच्चारण अस्मय हो जाएगा ।
एक औऱ उदाहरण;-
हमसफ़रों ----2112
अलग अलग उच्चारण होगा तो भी
सुमधुर ---सु/म/धुर। 112
सुविचार---1121
गिरी---1 1
सुधि---1 1
लेकिन अरूज़ के वक़्त कुछ शब्दों में छूट भी ले लेते हैं ।
जैसे--सुधि
सुधि के कंगन खनक रहे हैं ।
यहां सुधि को दो मात्रिक माना गया है ।
हमसफरों को भी आजकल 222 भी मान लिया जाता है ।
आदि आदि