tag:blogger.com,1999:blog-17977218915575645522024-03-13T08:39:53.652-07:00सफ़र ग़ज़ल का Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.comBlogger46125tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-91661009101441103942021-08-07T08:34:00.002-07:002021-08-07T08:34:15.437-07:00शुतुर-गर्बा [ क़िस्त -1]<p> उर्दू शायरी का एक ऐब : शुतुर-गर्बा [ क़िस्त -1]</p><p><br /></p><p>[ कल इस मंच पर अनिशा जी ने उमेश मौर्या जी के एक पोस्ट पर -शायरी के एक ऐब "शुतुर-गर्बा ’का ज़िक्र किया था और मौर्या जी ने</p><p>पूछा था कि यह क्या होता है ?</p><p>वैसे मुझे लगता है कि आप में से बहुत से लोग इस ऐब के बारे में जानते होंगे। और जो नहीं जानते है उनके लिए लिख रहा हूँ।</p><p>हालाँकि इस ऐब पर मैने अपने ब्लाग " उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 67 पर विस्तार से चर्चा किया है</p><p>डा0 शम्शुर्रहमान फ़ारुक़ीसाहब ने अपनी क़िताब " अरूज़ आहंग और बयान’ में लिखा है -</p><p>शे’र में ’ग़लती’ और”ऐब’ दो अलग अलग चीज़ हैं। ग़लती महज़ ग़लती है ।न हो तो अच्छा ।</p><p>मगर इसकी मौजूदगी में भी शे’र अच्छा हो सकता है ।जब कि ’ऐब’ एक ख़राबी है और शे’र की मुस्तकिल [स्थायी]</p><p>ख़राबी का बाइस [कारण] हो सकता है ।</p><p>उर्दू शायरी [ शे’र ] में मौलाना हसरत मोहानी ने जिन तमाम ऎब का ज़िक्र किया है उसमे से एक ऐब " शुतुर्गर्बा " भी शामिल है ।</p><p>शुतुर्गर्बा का लग़वी [शब्द कोशीय ] अर्थ "ऊँट-बिल्ली" है यानी शायरी के सन्दर्भ में यह ’बेमेल" प्रयोग के अर्थ में किया जाता है</p><p>[शुतुर= ऊँट और गर्बा= बिल्ली । इसी ’शुतुर’ से शुतुरमुर्ग भी बना है । मुर्ग= पक्षी । वह पक्षी जो पक्षियों में ऊँट जैसा लगता हो या दिखता हो--]</p><p>ख़ैर</p><p>अगर आप हिन्दी के व्याकरण से थोड़ा-बह्त परिचित हों तो आप जानते हैं</p><p>उत्तम पुरुष सर्वनाम -मैं-</p><p> एकवचन बहुवचन</p><p>मूल रूप मैं हम</p><p>तिर्यक रूप मुझ हम</p><p>कर्म-सम्प्रदान मुझे हमें</p><p>संबंध मेरा,मेरे,मेरी हमारा.हमारे.हमारी</p><p>----- -------</p><p>मध्यम पुरुष सर्वनाम -’तू’</p><p> एकवचन बहुवचन</p><p>मूल रूप तू तुम</p><p>तिर्यक रूप तुझ तुम</p><p>कर्म-सम्प्रदान तुझे तुम्हें</p><p>संबंध तेरा-तेरे--तेरी तुम्हारे-तुम्हारे-तुम्हारी</p><p>---- ---- ---</p><p>अन्य पुरुष सर्वनाम -’वह’-</p><p> एकवचन बहुवचन</p><p>मूल रूप वह वे</p><p>तिर्यक रूप उस उन</p><p>कर्म-सम्प्रदान उसे उन्हें</p><p>संबंध उसका-उसकी-उसके उनका-उनके-उनकी</p><p>---- ------</p><p>अन्य पुरुष सर्वनाम-यह- </p><p> एकवचन बहुवचन</p><p>मूल रूप यह ये</p><p>तिर्यक रूप इस इन</p><p>कर्म-सम्प्रदान इसे इन्हें</p><p>संबंध इसका- इसकी-इसके इनका-इनकी-इनके</p><p>कभी कभी शायरी में बह्र और वज़न की माँग पर हम लोग -यह- और -वह- की जगह -ये- और -वो- वे- का भी प्रयोग ’एकवचन’</p><p>के रूप में करते है -जो भाव के सन्दर्भ के अनुसार सही होता है</p><p>शे’र में एक वचन-बहुवचन का पास [ख़याल] ्रखना चाहिए । व्याकरण सम्मत होना चाहिए।यानी शे’र में सर्वनाम की एवं तत्संबंधित क्रियाओं में "एक रूपता" बनी रहनी चाहिए</p><p>ख़ैर यह कोई बहुत बड़ा ऐब नहीं है ,लेकिन हर शायर को यथा संभव बचना चाहिए। आखिर ग़ज़ल तहज़ीब और तमीज की ज़ुबान जो है ।यह ऐब अनायास ही आ जाता है भावनाओं के प्रवाह में । मगर नज़र-ए-सानी पर यह पकड़ में आ जाता है</p><p>आयेगा क्यों नहींं। बेमेल शादी शुदा जोड़ी [कद-कामत के लिहाज़ से] जल्द ही नज़र में आ जाता है चाहे आपसी राब्ता मिसरा का या उनका जितना भी प्र्गाढ़ हो। हा हा हा हा ।</p><p>दौर-ए-हाज़िर [वर्तमान समय ] में नए शायरों के कलाम में यह दोष [ऐब] आम पाया जाता है । अजीमुश्शान शायर [ प्रतिष्ठित शायर] के शे’र भी ऐसे</p><p>ऐब से अछूते नहीं रहे हैं। हालाँ कि ऐसे उदाहरण इन लोगों के कलाम में बहुत कम इक्का-दुक्का ही मिलते है ।आटे में नमक के बराबर</p><p>कभी कभी यह दोष मकामी ज़ुबान के प्रचलन से भी हो जाता है । जैसे पूर्वांचल [ लखनऊ के आस पास नज़ाकत और नफ़ासत की जुबान में ] आप आइए --आप जाइए--आप बैठिए बोलते है</p><p>जब कि दिल्ली के आसपास --आप आओ---आप जाओ -आप बैठॊ --बोलते है । जो शायरी में झलक जाता है । नेक-नीयती के साथ ही बोली जाती है ।</p><p>आज इतना ही । अगले क़िस्त में कुछ मशहूर शायरो के कलाम में यह ऐब -उदाहरण के तौर पर पेश करेंगे।क्रमश:---</p><p>इस मंच के तमाम असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो ज़रूर निशानदिही फ़रमाएँ कि आइन्दा मैं खुद को दुरुस्त कर सकूं~।</p><p>सादर</p><p>-आनन्द.पाठक-</p><div><br /></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-83632381635236114992021-08-07T08:27:00.002-07:002021-08-07T08:27:49.844-07:00एक ऐब : शुतुर-गर्बा<p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p>उर्दू शायरी का एक ऐब : शुतुर-गर्बा [ क़िस्त -2 अन्तिम]</p><p><br /></p><p>पिछली क़िस्त में "शुतुर-गर्बा" ऐब पर बात चल रही थी । उसी बात को आगे बढ़ाते हुए------</p><p>अगर आप ने किसी शे’र में -मैं - शब्द का प्रयोग किया है तो उसी शे’र में फिर-- मैं --मेरा-मेरी--मेरे--मुझे--मुझको-्शब्द लाना लज़िम हो जायेगा।</p><p>यानी </p><p>-मैं --मेरा-मेरी--मेरे--मुझे--मुझको-मुझ से --मुझ पर --आदि</p><p>उसी प्रकार </p><p>हम-हमें---हमारा--हमारी -हम से--हम पर--आदि</p><p>उसी प्रकार </p><p>तुम--तुम्हें--तुम्हारा--तुम को --तुम से --तुम पर --आदि</p><p>उसी प्रकार </p><p>वह--उसे--उसको --उस से--उसपर --</p><p>वो-- उन्हें उनको--उनसे--उन पर ---आदि आदि</p><p><br /></p><p>यह हिंदी व्याकरण का साधारण नियम है ।। अगर ऐसा नहीं किया तो ’शुतुर-गर्बा" का ऐब पैदा हो जाएगा।</p><p><span style="white-space: pre;"> </span>आप ने यह फ़िल्मी गाना [ मेरे सनम ] ज़रूर सुना होगा---</p><p><br /></p><p>जाइए आप कहाँ जायेंगे -ये नज़र लौट के फिर आएगी</p><p>दूर तक आप के पीछे पीछे--मेरी आवाज़ चली जाएगी</p><p><br /></p><p>यह गाना बिलकुल दुरुस्त है आहंग में है--कोई ऐब नहीं।</p><p>अब इस गाने को यूँ कर देता हूँ-</p><p>जाइए आप कहाँ जाओगे -ये नज़र लौट के फिर आएगी</p><p>आहंग अब भी बरक़रार है लय अब भी सही है .वज़न अब भी वही है । मगर---लहज़ा ठीक नहीं है --शुतुर गर्बा -का ऐब आ गया। कारण कि</p><p>इस बदली हुई लाइन में आशा पारेख ने एक बार तो हीरो को [आप] जाइए कह रही है और तुरन्त बाद [ तुम ] जाओगे कह रही है । यह लहज़ा ठीक नही है </p><p>इससे शुतुर गर्बा का ऐब पैदा हो जायेगा जो ज़ायज़ नहीं है ।</p><p><br /></p><p>शे’र में कोई ज़रूरी नहीं कि आप हमेशा--मैं--तुम--वह- आप प्रत्यक्ष रूप से लिखे ही लिखे---वह शे’र का लहज़ा बता देगा कि आप ने क्या संबोधित किया है ,कि आप क्या कहना चाह्ते हैं ।</p><p>अब कुछ शायरॊ के 1-2 कलाम लेते है ।</p><p>ग़ालिब का एक मशहूर शे’र है -आप ने भी सुना होगा।</p><p><br /></p><p>मैने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन</p><p>ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक</p><p><br /></p><p>बज़ाहिर पहले मिसरे में -मैने-- और दूसरे मिसरे में --हम-- ???? शुतुर गर्बा तो है ।</p><p>ग़ालिब उस्ताद शायर थे।उन से यह तवक़्को [ उमीद] तो नहीं की जा सकती है । तो लोगों ने कहा-कि इसका सही वर्जन यूँ है</p><p><br /></p><p>हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन</p><p>ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक</p><p><br /></p><p>अब यह ऐब ग़ायब हो गया । अब ग़ालिब के इस शे’र का सही वर्जन क्या है--हमें तो नहीं मालूम मगर दूसरा वाला शे’र सही लग रहा है ।</p><p> हो सकता है कि ग़ालिब के किसी मुस्तनद दीवान [प्रामाणिक दीवान ] में शायद यही सही रूप लिखा हो ।”</p><p>एक दूसरा उदाहरण लेते हैं </p><p>’मोमिन’ की एक मशहूर ग़ज़ल है --जिसे आप सभी ने सुना होगा । ---तुम्हें याद हो कि न याद हो ---। यह पूरा जुमला ही रदीफ़ है । </p><p>यदि आप ने इस ग़ज़ल के मक़्ता पर कभी ध्यान दिया हो तो मक़्ता यूँ है</p><p><br /></p><p>जिसे आप कहते थे आशना,जिसे आप कहते थे बावफ़ा</p><p>मैं वही हूँ मोमिन-ए-मुब्तिला ,तुम्हें याद हो कि न याद हो </p><p>-मोमिन-</p><p>यह शे’र बह्र-ए-कामिल की एक खूबसूरत मिसाल है । इस शे’र में भी बह्र और वज़न के हिसाब से कोई नुक़्स नहीं है </p><p>पहले मिसरा में ’आप’ और दूसरे मिसरा में ’तुम्हें’ --यह शुतुरगर्बा का ऐब है </p><p>ग़ालिब का ही एक शे’र और लेते हैं </p><p>वादा आने का वफ़ा कीजिए ,यह क्या अन्दाज़ है </p><p>तुम्हें क्या सौपनी है अपने घर की दरबानी मुझे ?</p><p>-ग़ालिब-</p><p>मिसरा उला मे "कीजिए" से ’आप’ का बोध हो रहा है जब कि मिसरा सानी में ’तुम्हें’ -कह दिया</p><p>यहअसंगत प्रयोग ? जी हां ,यहाँ शुतुर गर्बा का ऐब है ।</p><p><br /></p><p> एक मीर तक़ी मीर का शे’र देखते हैं</p><p><br /></p><p>ग़लत था आप से ग़ाफ़िल गुज़रना</p><p>न समझे हम कि इस क़ालिब में तू था </p><p>-मीर तक़ी मीर-</p><p><br /></p><p>वही ऐब । पहले मिसरे में ’आप’ और दूसरे मिसरे में ’तू’ " ग़लत है ।ऐब है॥शुतुरगर्बा ऐब।</p><p>चलते चलते एक शे’र ’आतिश’ का भी देख लेते हैं</p><p><br /></p><p>फ़स्ल-ए-बहार आई ’पीओ" सूफ़ियों शराब</p><p>बस हो चुकी नमाज़ मुसल्ला उठाइए </p><p>-आतिश-</p><p><br /></p><p>[ मुसल्ला--वह दरी या चटाई जिसपर बैठ कर मुसलमान नमाज़ पढ़ते ...हमारे यहाँ उसे ’आसनी’ कहते हैं।</p><p>बज़ाहिर ,यह लहज़ा ठीक नहीं है।</p><p><br /></p><p> अगर आप क़दीम [पुराने ] शो’अरा के कलाम इस नुक़्त-ए-नज़र से देखेंगे तो ऐसे ऐब आप को भी नज़र आयेंगे। नए शायरों में तो ख़ैर नज़र आते ही हैं।</p><p>किसी का ’ऐब’ देखना कोई अच्छी बात तो नहीं ।मगर हाँ -- ऐसे दोष को देख कर आप अपने शे’र-ओ-सुखन में इस दोष से बच सकते हैं</p><p>और ख़ास कर नए ,शायरों से यह निवेदन है कि अपने कलाम में ऐसे ’ऐब’ से बच सकें।</p><p>यह कोई दलील नही ,न ही सनद है, न ही लाइसेन्स है हमारे आप के लिए । ऐब ऐब है--चाहे हम करें आप करें या कोई और करे।</p><p><br /></p><p>जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है</p><p>उनका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है </p><p><span style="white-space: pre;"> </span>---अंजुम रहबर --</p><p><br /></p><p>बस "अमीरी " को आप "शुहरत" कर के दुबारा पढ़े--बात साफ़ हो जायेगी।</p><p><br /></p><p>अब आप बताएं -कि इस शे’र के मिसरा सानी में --उसका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है ---पढ़ सकते है ? अगर नहीं तो क्यॊं नहीं ?</p><p><br /></p><p>इस मंच के तमाम असातिज़ा से दस्तबस्ता गुज़ारिश है कि अगर कुछ ग़लतबयानी हो गई हो तो ज़रूर निशानदिही फ़रमाएँ कि आइन्दा मैं खुद को दुरुस्त कर सकूं~।</p><p>सादर</p><p>-आनन्द.पाठक-</p><div><br /></div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-66892763585823002852021-07-22T00:25:00.003-07:002021-08-01T21:16:46.190-07:00कुछ मात्राओं के साथ सफर<p> दोस्तो मात्रा गणना के भी कुछ नियम हमें याद रखने की ज़रूरत है ।</p><p>कुछ शब्द ऐसे होते हैं जी हमेशा हमें दुविधा में डाले रखते हैं । कुछ तो हमारी ग़ज़लों को ही बे-बह्र कर देती है । मैं यहाँ सिर्फ उन्हीं मूलभूत शब्दों का ही ज़िक्र करूँगा ।</p><p>ये नियम सिर्फ ग़ज़ल विद्या का ही स्रोत हैं हालांकि हिंदी छंद विद्या की मात्रा गणना से इसका अलग ही अस्तित्व होता है ।</p><p>अमूमन किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण में दोनों जुड़ शाश्वत दो मात्रिक दीर्घ बन जाते हैं । जैसे हम (ह+म) हम-2 ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं । जिनको ज़रूरत के अनुसार 1 1 अथवा 1 नहीं किया जा सकता । जैसे-</p><p>पल,खल, घर, सम, दम आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं।</p><p>शाश्वत का मतलब जो बदला न जा सके ।</p><p>शाश्वत दीर्घ अर्थात 2 है तो उसे अलग अलग दो लघु मात्रा (1 1)नही गिना जा सकता ।</p><p>मगर जिस शब्द के उच्चारण में दोनों अक्षर अलग अलग उच्चारित होंगे वहां ऐसा नही होगा ।</p><p>वहां दोनो लघु अलग अलग उच्चारित होंगे ।जैसे:</p><p>असमय----अ/स/मय</p><p>अ1 स1 मय2---/112</p><p>क्योंकि इनका उच्चारण भी अलग अलग होता है ।</p><p>असमय को 22 नहीं किया ना सकता ।</p><p>अगर 22 करेंगे तो उच्चारण अस्मय हो जाएगा ।</p><p>एक औऱ उदाहरण;-</p><p>हमसफ़रों ----2112</p><p>अलग अलग उच्चारण होगा तो भी</p><p>सुमधुर ---सु/म/धुर। 112</p><p>सुविचार---1121</p><p>गिरी---1 1</p><p>सुधि---1 1</p><p>लेकिन अरूज़ के वक़्त कुछ शब्दों में छूट भी ले लेते हैं ।</p><p>जैसे--सुधि </p><p>सुधि के कंगन खनक रहे हैं ।</p><p>यहां सुधि को दो मात्रिक माना गया है ।</p><p>हमसफरों को भी आजकल 222 भी मान लिया जाता है ।</p><p><br /></p><p>आदि आदि</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-34302820374924730932021-06-04T08:05:00.002-07:002021-06-06T02:00:33.053-07:00तकती: तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा, तेरे सामने मेरा हाल है<p> बहुत ही मुश्किल औऱ बेहतरीन बह्र । सीखने वालों को काफी मदद मिल सकती है इसे अपनी कलम में ज़रूर उतारनी चाहिए ।</p><p>★★★★★★★★★★★★★★</p><p>बहरे कामिल मुसम्मन सालिम</p><p>11212 11212 11212 11212</p><p>मेरी पसंदीदा बह्र औऱ गीत ।</p><p>★★★★★★★★★★★★★★</p><p>फ़िल्म आखरी दांव का जिसके गीतकार मजरुह सुलतानपुरी, गाया है रफ़ी साहिब ने, संगीत दिया है मदन मोहन जी ने । </p><p>◆◆◆◆</p><p>बोल हैं::</p><p><br /></p><p>तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा, तेरे सामने मेरा हाल है</p><p>तेरी एक निगाह की बात है, मेरी जिंदगी का सवाल है</p><p><br /></p><p>मेरी हर खुशी तेरे दम से है, मेरी जिंदगी तेरे गम से है</p><p>तेरे दर्द से रहे बेख़बर, मेरे दिल की कब ये मजाल है</p><p><br /></p><p>तेरे हुस्न पर है मेरी नज़र, मुझे सुबह शाम की क्या खबर</p><p>मेरी शाम है तेरी जुस्तजू, मेरी सुबह तेरा ख़याल है</p><p><br /></p><p>मेरे दिल जिगर में समा भी जा, रहे क्यो नज़र का भी फासला</p><p>के तेरे बगैर तो जान-ए-जां, मुझे जिंदगी भी मुहाल है</p><p><br /></p><p>◆◆◆◆</p><p><br /></p><p>इसी बह्र पर दूसरा गीत::</p><p><br /></p><p>मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है </p><p><br /></p><p>सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है </p><p>◆◆◆◆</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-45061742269588440712020-09-10T05:00:00.006-07:002020-09-10T05:00:58.712-07:00तकती::जाने क्या ढूंढती रहती है ये आँखे मुझमें<p> एक बेहतरीन बह्र*****</p><p>बहरे रमल मुसम्मन मखबून महज़ूफ मकतुअ</p><p>पर फ़िल्म शोला और शबनम का एक ख़ूबसूरत नग़मा</p><p>गायक हैं मुहम्मद रफ़ी गीतकार कैफ़ी आज़मी</p><p>संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम</p><p><br /></p><p>तकती</p><p><br /></p><p>2122 1122 1122 22</p><p>🔳🔳🔳🔳🔳🔳🔳🔳</p><p><br /></p><p>जाने क्या ढूंढती रहती है ये आँखे मुझमें,</p><p>राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है ।</p><p><br /></p><p>अब न वो प्यार न उसकी यादें बाकी,</p><p>आज यूँ दिल में लगी कुछ न रहा कुछ न बचा ।</p><p>जिसकी तस्वीर निगाहों में लिए बैठी हो,</p><p>मै वो दिलदार नहीं उसकी हूँ खामोश चिता ।</p><p><br /></p><p>ज़िन्दगी हँस के न गुज़रती तो बहुत अच्छा था,</p><p>खैर हंस के न सही रो के गुज़र जायेगी ।</p><p>राख बर्बाद मोहब्बत की बचा रखी है,</p><p>बार बार इसको जो छेड़ा तो बिखर जायेगी ।</p><p><br /></p><p>आरज़ू जुर्म वफ़ा जुर्म तमन्ना है गुनाह,</p><p>ये वो दुनिया है जहां प्यार नहीं हो सकता ।</p><p>कैसे बाज़ार का दस्तूर तुम्हें समझाऊं,</p><p>बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता ।</p><p>बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता ।</p><p><br /></p><p>🔳🔳🔳🔳🔳🔳🔳</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-2121280988369554152020-09-07T01:06:00.000-07:002020-09-07T01:06:04.828-07:00तकती:: ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बहरे हज़ज मसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ मक़सूर महज़ूफ़:<br />
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तकती;-<br />
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22 11 22 11 22 11 2 2 (1)<br />
या यूँ 22 11 22 11 22 11 22<br />
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दोस्तो "तकती" करने की कड़ी में आज मैं एक बहुत ही खूबसूरत नग़मा लेकर आया हूँ । ये एक खास और मुश्किल बह्र है । बहुत कम शायर हैं जिन्होंने इस बह्र को इस्तेमाल किया है । साहिर लुधियानवी जी उनमें से एक ऐसा व्यक्तित्व है जिनके अल्फासों की खनक कई दशकों तक हर ज़हन में याद बन उफनती रहेगी । दिल को छू लेने वाला ये नग़मा आज भी गुनगुनाने को दिल चाहता है ।<br />
1965 में आई फ़िल्म, काजल के लिए साहिर जी का लिखा ये गीत, रवि जी के संगीत से सजा और मोहम्मद रफ़ी जी ने इस गीत को खूब निभाया है । इस गीत को मुझे उम्मीद है आप आज ही खुद भी सुनना चाहेंगे ।<br />
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गीत के बोल हैं :-<br />
2211 2211 2211 22<br />
👇🏼<br />
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा<br />
इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा<br />
ये ज़ुल्फ़ अगर...<br />
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जिस तरह से थोड़ी-सी तेरे साथ कटी है<br />
बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा<br />
ये ज़ुल्फ़ अगर...<br />
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दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या<br />
ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा<br />
ये ज़ुल्फ़ अगर...<br />
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वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है<br />
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा<br />
ये ज़ुल्फ़ अगर...<br />
🔳🔳🔳🔳🔳🔳🔳🔳<br />
इसी बह्र पर कुछ और शायरों ने भी कहा है ।<br />
👇🏼<br />
गो हाथ मे जुंबिश नहीं हाथों मे तो दम है<br />
रहने दो अभी साग़रो-मीना मेरे आगे.(गालिब)<br />
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रंज़िश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ<br />
आ फिए से मुझे छोड़के जाने के लिए आ.( फ़राज़)<br />
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अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं<br />
कुछ शे'र फ़कत तुमको सुनाने के लिए हैं.( जां निसार अखतर)<br />
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🙏🙏</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-67138877115950220512020-08-30T03:42:00.000-07:002020-08-30T03:42:43.916-07:00तकती-देखती ही रहो आज दर्पण न तुम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरे पसंदीदा गायक #मुकेश जी ,और उस पर लीरिक्स गोपाल दास नीरज जी के...सोने पे जैसे सुहागा ।<br />
इस क्रम में आज फिर एक नायाब नगमा लेकर आया हूँ। आइये उसकी बह्र ऒर तकती देखें । 1965 में रिलीज हुई फिल्म- ‘नई उमर की नई फसल’ के लिए नीरज जी के ख्यालों से निकला यह गीत शेयर कर रहा हूँ, जिसे मुकेश जी ने संगीतकार रोशन जी के संगीत निर्देशन में, बेहद खूबसूरत तरीके से गाया, जिसमें गीतकार नीरज जी ने सौंदर्य को बहुत सुंदर तरीके से इस गीत में पिरोया है ऒर मुकेश जी ने अपनी खूबसूरत आवाज़ में इसे निभाया है :---<br />
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★★★★★★★★★<br />
बह्र-<br />
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम<br />
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तकती:-<br />
212 212 212 212<br />
◆◆◆◆◆◆◆◆◆<br />
<br />
देखती ही रहो आज दर्पण न तुम<br />
प्यार का ये महूरत निकल जाएगा, निकल जाएगा<br />
●<br />
साँस की तो बहुत तेज़ रफ़्तार है<br />
और छोटी बहुत है मिलन की घड़ी<br />
गूँथते गूँथते ये घटा साँवरी<br />
बुझ न जाये कहीं रूप की फुलझड़ी<br />
चूड़ियाँ ही न तुम–<br />
चूड़ियाँ ही न तुम खनखनाती रहो<br />
ये शरमसार मौसम बदल जायेगा, बदल जायेगा।<br />
●<br />
सुर्ख होंठों पे उफ़ ये हँसी मदभरी<br />
जैसे शबनम अँगारों की मेहमान हो<br />
जादू बुनती हुई ये नशीली नज़र<br />
देख ले तो ख़ुदाई परेशान हो<br />
मुस्कुराओ न ऐसे —<br />
मुस्कुराओ न ऐसे चुराकर नज़र<br />
आइना देख सूरत मचल जायेगा, मचल जायेगा।<br />
●<br />
चाल ऐसी है मदहोश मस्ती भरी<br />
नींद सूरज सितारों को आने लगे<br />
इतने नाज़ुक क़दम चूम पाये अगर<br />
सोते सोते बियाबान गाने लगे<br />
मत महावर रचाओ–<br />
मत महावर रचाओ बहुत पाँव में<br />
फ़र्श का मरमरी दिल दहल जायेगा, दहल जायेगा<br />
●<br />
<br />
देखती ही रहो आज दर्पण न तुम।<br />
★★★★★★★★★★<br />
<br />
हर्ष महाजन</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-41536808339506881202018-10-04T04:07:00.000-07:002018-10-04T04:07:02.074-07:00तकती: होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दोस्तो,<br />
इसी कड़ी में एक और गीत:<br />
<br />
#जिसकी बह्र और तकती:<br />
<br />
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़<br />
2122-1122-1122-22<br />
************************<br />
जिसे जब भी मैं सुनता हूँ मेरी रूह तक कांप जाती है । देशभक्ति का प्रेम से सराबोर मगर दर्द से भरा "हकीकत" फ़िल्म का ये गीत ,संगीतकार : मदन मोहन बोल दिए हैं गीतकार : कैफ़ी आज़मी साहब ने और<br />
गायक हैं: भूपिंदर, मोहम्मद रफ़ी, तलत महमूद-मन्ना डे<br />
**************************,*****************<br />
होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा<br />
ज़हर चुपके से दवा जानके खाया होगा<br />
होके मजबूर...<br />
<br />
भूपिंदर: दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाए होंगे<br />
अश्क़ आँखों ने पिये और न बहाए होंगे<br />
बन्द कमरे में जो खत मेरे जलाए होंगे<br />
एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा<br />
<br />
रफ़ी: उसने घबराके नज़र लाख बचाई होगी<br />
दिल की लुटती हुई दुनिया नज़र आई होगी<br />
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी<br />
हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा<br />
होके मजबूर...<br />
<br />
तलत: छेड़ की बात पे अरमाँ मचल आए होंगे<br />
ग़म दिखावे की हँसी ने न छुपाए होंगे<br />
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आए होंगे - (२)<br />
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा<br />
<br />
मन्ना डे: ज़ुल्फ़ ज़िद करके किसी ने जो बनाई होगी<br />
और भी ग़म की घटा मुखड़े पे छाई होगी<br />
बिजली नज़रों ने कई दिन न गिराई होगी<br />
रँग चहरे पे कई रोज़ न आया होगा<br />
होके मजबूर...<br />
<br />
*****</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-49900640552698038532018-10-03T22:35:00.000-07:002018-10-04T04:00:43.014-07:00तकती : ठहरिए होश में आलूँ तो चले जाइयेगा ।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दोस्तो आज उसी बह्र का ज़िक्र मैं दुबारा करूँगा जिसका जिक्र मैंने पिछले गीत में किया था ।<br />
<br />
"पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी"<br />
इसकी बह्र: और तकती<br />
<br />
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़<br />
<br />
फ़ाइलातुन, फ़इलातुन, फ़इलातुन, फ़ेलुन<br />
2122, 1122, 1122, 22(112)<br />
इस बहर में 22 की जगह 112 भी इस्तेमाल हो सकता है<br />
*****************************************<br />
<br />
इस गीत में हमने गीत की तकती यूँ की :-<br />
<br />
2122 1122 1122 22<br />
<br />
लेकिन इस बह्र के गीतों में कई बार आखिरी शब्द की तकती में (22) की जगह (112) भी इस्तेमाल होता है ।<br />
<br />
ये बात practically समझाने के लिए एक ही गीत में जहां दोनों अरकान इस्तेमाल हुईं हैं वही गीत यहां पेश किया है । उम्मीद है अब ये बह्र अच्छे से समझ में आएगी ।<br />
<br />
आइए देखिए :<br />
<br />
फ़िल्म: "मुहब्बत इसको कहते हैं" का ये गीत, मो0 रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर ने गाया और संगीत दिया है खय्याम साहब ने । गीतकार है मज़रूह सुल्तानपूरी<br />
*******************************<br />
मुखड़ा देखिए :<br />
<br />
ठहरिये होश में आलूँ तो चले जाइयेगा<br />
आपको दिल में बिठालूँ तो चले जाइयेगा<br />
<br />
इसकी तकती:<br />
2122 1122 1122 112<br />
<br />
आपको दिल में बिठालूँ.....<br />
<br />
अब अंतरा देखिए:<br />
<br />
कब तलक़ रहियेगा यूँ दूर की चाहत बनके – 2<br />
दिल में आ जाइये इक़रार-ए-मुहब्बत बनके<br />
अपनी तक़दीर बना लूँ तो चले जाइयेगा<br />
<br />
2122 1122 1122 22<br />
<br />
आपको दिल में बिठालूँ…<br />
<br />
मुझको इक़रार-ए-मुहब्बत पे हया आती है – 2<br />
बात कहते हुए गरदन मेरी झुक जाती है<br />
देखिये सर को झुका लूँ तो चले जाइयेगा<br />
हम्म… हम्म…<br />
देखिये सर को झुका लूँ तो चले जाइयेगा<br />
हाय, आपको दिल में बिठालूँ…<br />
<br />
ऐसी क्या शर्म ज़रा पास तो आने दीजे – 2<br />
रुख से बिखरी हुइ ज़ुल्फ़ें तो हटाने दीजे<br />
प्यास आँखों की बुझा लूँ तो चले जाइयेगा<br />
ठहरिये होश में आलूँ तो चले जाइयेगा…<br />
<br />
****<br />
<br />
अब आप चाहें तो इस गीत को पहले गीत की धुन पर गा सकते हैं ।<br />
<br />
"पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी"<br />
<br />
Enjoy both the Songs and their tune simultaneously.</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-81144581702558621512018-07-02T08:59:00.000-07:002018-07-02T08:59:14.242-07:00तकती : कभी तन्हाइयों में यूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
#तकती बहर<br />
<br />
फ़िल्म फिर हमारी याद आएगी का एक औऱ गीत<br />
संगीतकार स्नेहल भटकर गीतकार केदार शर्मा ,गायक / मुबारक बेगम<br />
ओर बोल<br />
<br />
कभी तनहाइयों में यूँ<br />
हमारी याद आएगी<br />
अंधेरे छा रहे होंगे<br />
के बिजली कौंध जाएगी<br />
कभी तनहाइयों में यूँ...<br />
<br />
ये बिजली राख कर जएगी तेरे प्यार की दुनिया - २<br />
ना फिर तू जी सकेगा और, ना तुझको मौत आएगी<br />
कभी तनहाइयों में यूँ...<br />
<br />
1222/1222/1222/1222<br />
<br />
***<br />
<br />
दोस्तो अब इसी धुन औऱ बहर पर एक बहुत ही बेशकीमती गीत ....गुनगुनाइए ...इस गीत कु अपनी धुन भूल जाइए ,......Or vice versa<br />
फ़िल्म तीसरी कसम का , शंकर-जयकिशन जी के संगीत पर शैलेन्द्र जी द्वारा कलम बद्द किया और मुकेश जी का गाया ....<br />
<br />
सजन रे झूठ मत बोलो<br />
खुदा के पास जाना है<br />
न हाथी है न घोड़ा है<br />
वहाँ पैदल ही जाना है<br />
<br />
तुम्हारे महल चौबारे<br />
यहीं रह जायेंगे सारे<br />
अकड़ किस बात की प्यारे<br />
ये सर फिर भी झुकाना है<br />
सजन रे झूठ...<br />
<br />
*****</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-78312533982888686062018-06-14T07:23:00.000-07:002020-08-05T09:03:32.488-07:00तकती : बदल जाये अगर माली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
#तकती<br />
<br />
दोस्तो अदाकारा तनुजा और माला सिन्हा ने 1966 में<br />
आई "फ़िल्म: बहारें फिर भी आएंगी " से धूम मचा दी थी । जब कैफ़ी आज़मी का कलम बद्द किया ये गीत उन पर फिल्माया गया उनकी अदा के लोग दीवाने हो गए । इस गीत को आवाज़ देने वाले गायक महेंद्र कपूर उन दिनों मुहम्मद रफी की दूसरी कॉपी नज़र आने लगे थे ओ. पी. नय्यर साहब के संगीत ने इसमें ऐसी जान फूंकी की हर शख्स की ज़ुबाँ पर उन दिनों ये गीत चलने लगा ।<br />
<br />
आइए इस गीत की तकती और बहर देखें :<br />
<br />
बदल जाये अगर माली चमन होता नहीं खाली<br />
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी<br />
<br />
(थकन कैसी घुटन कैसी चल अपनी धुन में दीवाने) – 2<br />
(खिला ले फूल काँटों में सजा ले अपने वीराने) – 2<br />
हवाएं आग भड़काएं फ़िज़ाएं ज़हर बरसाएं<br />
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी ।<br />
<br />
1222-1222-1222-1222<br />
(बहरे हजज़ मुसद्दस सालिम ।<br />
<br />
***</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-1171077304425800722018-06-12T09:58:00.000-07:002018-06-12T09:58:29.343-07:00तकतीअ : ग़ज़ल : नज़्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तकतीअ क्या है ?***** #Hint<br />
<br />
ग़ज़ल:नज़्म<br />
<br />
दोस्तो एक बात तो आप गिरह से बाँध लें कि बिना धुन/बहर के ग़ज़ल को आज़ाद नज़्म कहते है ।<br />
ग़ज़ल नहीं और सच कहूं तो आज़ाद नज़्म का काव्य में कोई भी स्थान नहीं है । हमारी तकतीअ की श्रृंखला में सबसे महत्वपूर्ण बात पहले हमें शब्द का वज़्न करना आना चाहिए । इस विदा में अगर हम कमजोर हैं तो ग़ज़ल कहना बहुत मुश्किल होगा । इसके लिए हम पहले शब्द को तोड़ेंगे, जिस आधार पर हम उसका उच्चारण करते हैं । शब्द की सबसे छोटी इकाई होती है वर्ण । तो शब्दों को हम वर्णों मे तोड़ेंगे । वर्ण वह ध्वनि हैं जो किसी शब्द को बोलने में एक समय मे हमारे मुँह से निकलती है और ध्वनियाँ केवल दो तरह की होती हैं या तो छोटी या बड़ी। शब्द देखिये :<br />
<br />
जैसे:<br />
<br />
बहारो<br />
<br />
ब- छोटी ध्वनि<br />
हा- बडी ध्वनि<br />
रो- बड़ी ध्वनि<br />
<br />
आदि ।<br />
<br />
******</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-4948558220211251802018-06-12T03:06:00.000-07:002018-06-12T03:06:12.645-07:00तकती : बहारो ने मेरा चमन लूटकर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
#तकती<br />
<br />
दोस्तो इस खूबसूरत श्रृंखला में और एक गीत आपकी नज़र.... आइए देखें फिल्मः देवर , गायक हैं: मुकेश, संगीतकारः रौशन, गीतकारः आनंद बक्शी<br />
<br />
बोल:<br />
<br />
बहारों ने मेरा चमन लूटकर<br />
खिज़ां को ये इल्ज़ाम क्यों दे दिया<br />
किसी ने चलो दुश्मनी की मगर<br />
इसे दोस्ती नाम क्यों दे दिया ।<br />
<br />
122-122-122-12<br />
<br />
****<br />
वही धुन ओर वही बहर । ऊपर की धुन पर ही गुनगुनाइए ।<br />
<br />
सुहाना सफर उर ये मौसम हँसी<br />
हमें डर है हम खो न जाएँ कहीं ।<br />
<br />
****</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-4486703725764207192018-06-11T05:41:00.000-07:002018-06-11T06:08:28.041-07:00तकती : ओ दूर के मुसाफिर :: शिकस्ता बहर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बहरे शिकस्ता<br />
************<br />
दोस्तो एक बेहद ही पेचीदा बहर के बारे में बात करते हैं "शिकस्ता बहर"<br />
<br />
शिकस्ता बहर के बारे में एक बात ध्यान देने की है कि हर चार रुक्न के बाद एक ’ठहराव’ होना ज़रूरी है जिसे हिन्दी में आप ’मध्यान्तर ’ कह सकते हैं।<br />
इसका मतलब यह हुआ कि आप को जो बात कहनी है वह वक़्फ़ा के पहले हिस्से में [पूर्वार्ध मे] कह लीजिये और दूसरी बात वक़्फ़ा के दूसरे हिस्से [यानी उत्तरार्ध में] कहिए। इसको बहर में -// ऐसे दरसगया जाता है । यानी ये नही होगा कि आप की बात ”चौथे और पाँचवे’ रुक्न मिलाकर पूरी हो । यदि ऐसा है तो बहर ’शिकस्ता’ कहलायेगी और अगर ऐसा नहीं है तो बहर ’शिकस्ता ना-रवा’ कहलायेगी ।<br />
<br />
शिकस्ता बहर में एक नग़मा :<br />
फ़िल्म: उड़न खटोला, गायक/गायिका: मोहम्मद रफ़ी<br />
संगीतकार: नौशाद, गीतकार: शकील बदांयुनी ।<br />
<br />
ओ दूर के मुसाफ़िर // हम को भी साथ ले ले<br />
हम को भी साथ ले ले //हम रह गये अकेले ।<br />
<br />
221-2122- //-221-2122<br />
<br />
*********<br />
<br />
कुछ और उदाहरण:<br />
<br />
*जब से हुई है मेरी शादी-//- आँसू बहा रहा हूँ ।<br />
*गुजरा हुआ जमाना-//- आता नहीं दुबारा ।<br />
*सारे जहां से अच्छा-//- हिन्दूसितां हमारा ।<br />
*छेड़ो न मेरी ज़ुल्फ़ें -//- ये लोग क्या कहेंगे ।<br />
<br />
***</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-81068035948865938862018-06-11T02:55:00.000-07:002018-06-11T02:55:20.074-07:00तकती : अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;">मधुर गीत : तकती</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;">एक और गीत, फ़िल्म- एन ईवनिंग इन पेरिस, गीत- हसरत जयपुरी, संगीत- शंकर जयकिशन, गायक- मोहम्मद रफ़ी ।</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;">अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो,</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;">हमें साथ ले लो जहां जा रहे हो ।</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;">122-122-122-122</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;">****</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 16px;"><br /></span></div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-76868124734009733902018-06-10T20:46:00.001-07:002018-06-10T21:09:48.124-07:00तकती : मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आइए दोस्तो एक पुराने गाने का पोस्टमार्टम उसकी तकती कर करें । एक मनभावन गीत<br />
फ़िल्म- हम दोनो, गीत- साहिर लुधियानवी, संगीत- जयदेव, गायक- मोहम्मद रफ़ी । ।<br />
<br />
" मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया"<br />
<br />
ये सारा गीत एक ही बहर और एक ही स्केल पर गाया गया ।<br />
<br />
बहर :<br />
<br />
221-2121-1221-212<br />
<br />
***<br />
<br />
इसी बहर पर आधारित फिल्म : अदालत का एक और गीत जिसे उसी धुन पर गुनगुनाइए :<br />
<br />
गीतकार : राजेन्द्र कृष्ण, गायक : लता मंगेशकर, संगीतकार : मदन मोहन,<br />
<br />
यूँ हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिए<br />
फिर दिल से दिल की बात कही औऱ रो लिए ।<br />
<br />
वही धुन वही बहर..... एक दूसरे के पूरक ।<br />
<br />
****</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-24205099397047885822018-06-10T10:29:00.000-07:002018-06-10T10:29:19.346-07:00तकती: हूई शाम उनका ख्याल आया गया है ।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दोस्तो फिर हाज़िर हुआ हूँ एक और गीत लेकर ।<br />
<br />
फ़िल्म- मेरे हमदम मेरे दोस्त, गीत- मजरूह सुल्तानपुरी, संगीत- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गायक- मोहम्मद रफ़ी<br />
<br />
ये गीत भी दो बहरों का संगम है गौर कीजियेगा<br />
<br />
मुखड़ा :<br />
हुई शाम उनका ख़्याल आ गया<br />
वही ज़िन्दगी का सवाल आ गया<br />
<br />
( ख्याला गया )<br />
<br />
122-122-122-12<br />
<br />
अंतरा :<br />
<br />
अभी तक तो होंठों पे था<br />
तबस्सुम का इक सिलसिला ।<br />
<br />
122-122-12<br />
<br />
****************</div>
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बेहद खूबसूरत औऱ दिलकश नग़मा और उसकी तकती आपकी अदालत में पेश है<br />
********************<br />
फिल्मः बावरे नैन ,गायक/गायिकाः मुकेश, गीता दत्त<br />
संगीतकारः रौशन, गीतकारः केदार शर्मा ........<br />
<br />
ख़यालों में किसी के, इस तरह आया नहीं करते<br />
किसी को बेवफ़ा आ आ के तड़पाया नहीं करते<br />
दिलों को रौंद कर दिल अपना बहलाया नहीं करते<br />
जो ठुकराए गए हों उनको ठुकराया नहीं करते<br />
<br />
#तकती<br />
<br />
1222-1222-1222-1222<br />
<br />
***</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-75829787627425091022018-05-12T22:29:00.000-07:002018-05-12T22:29:02.079-07:00एक गीत में दो बहरों का समावेश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
#तकती<br />
💐💐💐<br />
दोस्तो आज फिर एक दो बहर का मनभावन गीत आपकी अदालत में पेश है ।<br />
बहर के लिहाज से बड़ा ही पेचीदा लेकिन मेरा बहुत ही मनपसंद गीत ।<br />
पेचीदा इस लिए कि इस गीत में भी दो बहरों का समावेश है ।<br />
🐼🐼🐼🐼🐼🐼🐼🐼<br />
गीत के बोल : और उसकी तकती<br />
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^<br />
<br />
फ़िल्म शर्त का ये गीत,संगीतकार: हेमंत कुमार गीतकार :एस.एच.बिहारी और गायक : हेमंत कुमार, गीता दत्त<br />
*****************<br />
मुखड़ा<br />
🌴🌴🌴<br />
न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे<br />
मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे<br />
<br />
🌻122-122-122-122<br />
बहर: मुतकारीब मुसम्मन सालिम<br />
👁👁👁👁👁👁👁👁👁<br />
<br />
अंतरा देखिये<br />
🌺🌺🌺🌺<br />
<br />
बिछड़कर चले जाएँ तुमसे कहीं<br />
तो ये ना समझना मुहब्बत नहीं ।<br />
<br />
🌻122-122-122-12<br />
बहर :मुतकारीब मुसम्मन महज़ूफ़<br />
👁👁👁👁👁👁👁👁👁<br />
<br />
अब देखिए ऊपर गीत का अंतरा अगर हम नीचे वाले गीत के मुखड़े की तर्ज़ पर गायें तो :<br />
<br />
🌹सुहाना सफर उर ये मौसम हँसी,<br />
हमें डर है हम खो न जाएँ कहीं ।<br />
<br />
🌻122-122-122-12<br />
बहर :मुतकारीब मुसम्मन महज़ूफ़<br />
🏈🏈🏈🏈🏈🏈🏈🏈🏈<br />
<br />
<br />
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Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-1443389042899508682018-05-06T00:48:00.001-07:002018-05-06T00:48:35.647-07:00बहर 11-212---11-212---11-212---11-212<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br />#तकती<br /><br />फ़िल्म है आकाश दीप, गीतकार : मजरूह सुलतानपुरी, गायक : मोहम्मद रफी, संगीतकार : चित्रगुप्त, <br /> <span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5d/1/16/1f43d.png" width="16" /><span class="_7oe">🐽</span></span><br />
बोल हैं:<br />
मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था <br /> मुझे आप किस लिये मिल गये? <br /> मैं अकेले यूँ भी मज़े में था मुझे<br /> आप किस लिये मिल गये? <br />
यूँ ही अपने अपने सफ़र में गुम <br /> कहीं दूर मैं कहीं दूर तुम<br /> ********************<br /> बहर:<br />
11-212---11-212---11-212---11-212<br /> इसमें 11 का 12 भी हो सकता है। <br /> यानी 12-212 or 122-12<br /> कामिल मुसम्मन सालिम<br /> <span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /><span class="_7oe">🎂</span></span><span class="_5mfr _47e3"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/f5/1/16/1f382.png" width="16" /></span><br /></div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1797721891557564552.post-30989207014528138882018-04-24T04:30:00.000-07:002018-04-24T04:30:03.175-07:00वो जब याद आये<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
#तकती :<br />
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈<br />
"एक ज़रूरी बात"<br />
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈<br />
दोस्तो मेरा एक बहुत ही पसन्दीदा और खूबसूरत नग़मा ...<br />
फ़िल्म: पारसमणि<br />
गायक/गायिका: मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर<br />
संगीतकार: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल<br />
गीतकार: फारुख कैसर<br />
अदाकार: गीतांजलि, महिपाल<br />
*********************<br />
<br />
बोल हैं......<br />
<br />
🌹मुखड़ा:<br />
<br />
🍀वो जब याद आए बहुत याद आए<br />
ग़म-ए-ज़िंदगी के अंधेरे में हमने<br />
चिराग-ए-मुहब्बत जलाए बुझाए<br />
<br />
🌹अंतरा:<br />
<br />
🌺आहटें जाग उठीं रास्ते हंस दिये<br />
थामकर दिल उठे हम किसी के लिये<br />
कई बार ऐसा भी धोखा हुआ है<br />
चले आ रहे हैं वो नज़रें झुकाए<br />
🐤🐤🐤🐤🐤🐤🐤🐤🐤<br />
दोस्तो एक बात का हमेशा ख्याल रक्खें कि जब भी किसी गीत की बहर और तकती के बारे यहाँ चर्चा हो तो समझना कि हम उस गीत के मुखड़े की तकती के बारे में बात कर रहे है। ये ज़रूरी नहीं है कि उस गीत विशेष का अंतरा भी उसी बहर में हो ।<br />
🐼🐼🐼🐼🐼🐼🐼🐼🐼<br />
अब जैसे इसी गीत के बारे में देखिएगा ।<br />
<br />
🍑#मुखड़ा : बहर<br />
वो जब याद आए बहुत याद आए<br />
<br />
122 122 122 122<br />
<br />
🍑#अंतरा देखिए: और इसकी बहर देखिए:<br />
<br />
🍑आहटें जाग उठीं रास्ते हँस दिये / आहटें जागु ठीं रास्ते हँस दिए ।<br />
थामकर दिल उठे हम किसी के लिये ।<br />
🎈बहर<br />
212 212 212 212<br />
<br />
हमने देखा एक ही नग्में में किस तरह दो बहरों से काम हो रहा है ।<br />
<br />
अब इस गीत में जिस बहर पर अंतरा है उसी बहर पर एक मशहूर फिल्म हमराज़ का एक मशहूर नग़मा...<br />
<br />
🍑तुम अगर साथ देने का वादा करो<br />
मैं यूँ ही मस्त नग्में लुटाता रहूँ ।<br />
212 212 212 212<br />
<br />
अब देखिये ऊपर पहले गीत का अंतरा:.....<br />
<br />
आहटें जाग उठीं रास्ते हँस दिये / आहटें जागु ठीं रास्ते हँस दिए ।<br />
<br />
इस अन्तरे को आप इसी गीत (फ़िल्म हमराज़)की धुन पर गा सकते हैं ।<br />
<br />
☪☪☪<br />
<br />
💐💐इसी सीरीज़ में फिर मिलेंगे💐💐</div>
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आईये एक और पुराने नग्में की तकती और उसकी बहरउनके अरकान के साथ देखें :-<br />
<br />
फ़िल्म : दोस्त का एक नग़मा, संगीतकार : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीतकार : आनंद बक्षी और गायक : किशोर कुमार<br />
<br />
*******************************<br />
गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है<br />
चलना ही ज़िंदगी है, चलती ही जा रही है ।<br />
********************************<br />
<br />
दोस्तो इस नग्मे की बहर दो तरीके से देखी जा सकती है ।<br />
1) 221-2122-221-2122<br />
अरकान : मफ़ऊलू- फ़ाइलातून-मफ़ऊलू- फ़ाइलातून<br />
<br />
2) 2212-122-2212-122<br />
अरकान : मुसतफ़इलुन-फ़ऊलुन-मुसतफ़इलुन-फ़ऊलुन<br />
<br />
@@@@@@@@@######@@@@@@@@</div>
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<br />
शकील बदांयूनी जी का स्वर बद्ध किया, नॉशाद जी का संगीत बद्ध किया और रफी साहब का गाया , एक बहुत ही पुरानी फ़िल्म, मेरे महबूब का ये गीत और उसकी बहर ::<br />
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***************************<br />
ऐ हुस्न ज़रा जाग तुझे इश्क जगाये<br />
बदले मेरी तकदीर जो तू होश में आये<br />
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<br />
221 1221 1221 122<br />
<br />
बहरे हजज़ मुसम्मन अखरब मकफूफ महजूफ<br />
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂</div>
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<br />
फिल्मी गानों की तकती बहर पार्ट - 10 में सम्मिकित करने लिए कुछ और गीतों की तकती देखें<br />
**************************<br />
वज़्न--2122 1122 1122 22(112)<br />
<br />
अर्कान-- फ़ाइलातुन - फ़इलातुन - फ़इलातुन - फ़ैलुन (फ़इलुन)<br />
<br />
<br />
(अंत में 22 की जगह 112 भी लिया जा सकता है)<br />
<br />
<br />
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈<br />
<br />
◆ रंग औ नूर की बारात किसे पेश करूँ..<br />
◆ तेरी तस्वीर को सीने से लगा रक्खा है..<br />
◆ आपकी मद भरी आँखों को कँवल कहते हैं..<br />
◆ दिल की आवाज भी सुन मेरे फ़साने पे न जा<br />
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈</div>
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<br />
<br />
वज़्न-- 2122 1212 22/112<br />
अर्कान-- फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन<br />
<br />
गीत<br />
------<br />
1. फिर छिड़ी रात बात फूलों की<br />
2. तेरे दर पे सनम चले आये<br />
3. आप जिनके करीब होते हैं<br />
4. यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो,<br />
5. मेरी किस्मत में तू नहीं शायद<br />
6. आज फिर जीने की तमन्ना है<br />
7. ये मुलाकात इक बहाना है<br />
************************************<br />
<br /></div>
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