Monday, June 11, 2018

तकती : ओ दूर के मुसाफिर :: शिकस्ता बहर

बहरे शिकस्ता
************
दोस्तो एक बेहद ही पेचीदा बहर के बारे में बात करते हैं "शिकस्ता बहर"

शिकस्ता बहर के बारे में एक बात ध्यान देने की है कि हर चार रुक्न के बाद एक ’ठहराव’ होना ज़रूरी है जिसे हिन्दी में आप ’मध्यान्तर ’ कह सकते हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि आप को जो बात कहनी है वह वक़्फ़ा के पहले हिस्से में [पूर्वार्ध मे] कह लीजिये और दूसरी बात वक़्फ़ा के दूसरे हिस्से [यानी उत्तरार्ध में] कहिए।  इसको बहर में -//  ऐसे दरसगया जाता है । यानी ये नही होगा कि आप की बात ”चौथे और पाँचवे’ रुक्न मिलाकर पूरी हो । यदि ऐसा है तो बहर  ’शिकस्ता’ कहलायेगी और अगर ऐसा नहीं है तो बहर ’शिकस्ता ना-रवा’ कहलायेगी ।

शिकस्ता बहर में एक नग़मा  :
फ़िल्म: उड़न खटोला, गायक/गायिका: मोहम्मद रफ़ी
संगीतकार: नौशाद, गीतकार: शकील बदांयुनी ।

ओ दूर के मुसाफ़िर // हम को भी साथ ले ले
हम को भी साथ ले ले //हम रह गये अकेले ।

221-2122- //-221-2122

*********

कुछ  और उदाहरण:

*जब से हुई है मेरी शादी-//- आँसू बहा रहा हूँ ।
*गुजरा हुआ जमाना-//- आता नहीं दुबारा ।
*सारे जहां से अच्छा-//- हिन्दूसितां हमारा ।
*छेड़ो न मेरी ज़ुल्फ़ें -//- ये लोग क्या कहेंगे ।

***

No comments:

Post a Comment